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जनो॒ यो मि॑त्रावरुणावभि॒ध्रुग॒पो न वां॑ सु॒नोत्य॑क्ष्णया॒ध्रुक्। स्व॒यं स यक्ष्मं॒ हृद॑ये॒ नि ध॑त्त॒ आप॒ यदीं॒ होत्रा॑भिर्ऋ॒तावा॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

jano yo mitrāvaruṇāv abhidhrug apo na vāṁ sunoty akṣṇayādhruk | svayaṁ sa yakṣmaṁ hṛdaye ni dhatta āpa yad īṁ hotrābhir ṛtāvā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

जनः॑। यः। मि॒त्रा॒व॒रु॒णौ॒। अ॒भि॒ऽध्रुक्। अ॒पः। न। वा॒म्। सु॒नोति॑। अ॒क्ष्ण॒या॒ऽध्रुक्। स्व॒यम्। सः। यक्ष्म॑म्। हृद॑ये। नि। ध॒त्त॒। आप॑। यत्। ई॒म्। होत्रा॑भिः। ऋ॒तऽवा॑ ॥ १.१२२.९

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:122» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:1» वर्ग:2» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:18» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सत्य उपदेश और यज्ञ करानेवालो ! (यः) जो (जनः) विद्वान् (वाम्) तुम दोनों के (अपः) प्राण अर्थात् बलों को (मित्रावरुणा) प्राण तथा उदान जैसे वैसे (अभिध्रुक्) आगे से द्रोह करता वा (अक्ष्णयाध्रुक्) कुटिलरीति से द्रोह करता हुआ (न) नहीं (सुनोति) उत्पन्न करता (सः) वह (स्वयम्) आप (हृदये) अपने हृदय में (यक्ष्मम्) राजरोग को (नि, धत्ते) निरन्तर धारण करता वा (यत्) जो (ऋतावा) सत्य भाव से सेवन करनेवाला (होत्राभिः) ग्रहण करने योग्य क्रियाओं से (ईम्) सब ओर से आपके व्यवहारों को प्राप्त होता है, वह (आप) अपने हृदय में सुख को निरन्तर धारण करता है ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परोपकार करनेवाले विद्वानों से द्रोह करता वह सदा दुःखी और जो प्रीति करता है, वह सुखी होता है ॥ ९ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे सत्योपदेशकयाजकौ यो जनो वामपो मित्रावरुणाविवाभिध्रुगक्ष्णयाध्रुक् सन्न सुनोति स स्वयं हृदये यक्ष्मं निधत्ते यद्यऋतावा होत्राभिरीमाप स स्वयं हृदये सुखं निधत्ते ॥ ९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (जनः) विद्वान् (यः) (मित्रावरुणौ) प्राणोदानाविव (अभिध्रुक्) अभितो द्रोहं कुर्वन् (अपः) प्राणान् (न) निषेधे (वाम्) युवयोः (सुनोति) निष्पन्नान् करोति (अक्ष्णयाध्रुक्) कुटिलया रीत्या द्रुह्यति सः (स्वयम्) (सः) (यक्ष्मम्) राजरोगम् (हृदये) (नि) (धत्ते) (आप) आप्नोति (यत्) यः (ईम्) सर्वतः (होत्राभिः) आदातुमर्हाभिः क्रियाभिः (ऋतावा) य ऋतेन सत्येन वनोति संभजति सः ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - यो मनुष्यः परोपकारकान् विदुषो द्रुह्यति स सदा दुःखी यश्च प्रीणाति स च सुखी जायते ॥ ९ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो माणूस परोपकार करणाऱ्या विद्वानांशी वैर करतो तो सदैव दुःखी होतो व जो प्रीती करतो तो सुखी होतो. ॥ ९ ॥